Saturday, September 5, 2009

First attempt

पड़ी थी मैं सोच में
कि ज़िन्दगी क्या खेल खिलाएगी आज,
पडी थी मैं सोच में
कि इस ख़ुशी में क्या गुप्त ग़म है आज |

पड़ी थी मैं सोच में
कि शायद मैं कुछ कर सकती हूँ,
पड़ी थी मैं सोच में
कि यह दुनिया, दुष्ट, जिससे मैं डरती हूँ |

पड़ी थी मैं सोच में
कि पलट कर अपने दिल के भूत का सामना न करुँ,
पड़ी थी मैं सोच में
कि मेरे माता-पिता कि आकाँक्षा है कि मैं जो चाहूं करुँ |

पड़ी थी मैं सोच में
कि मेरी ज़िन्दगी हाथ से निकल-सी गई,
पड़ी थी मैं सोच में
कि पड़ी थी मैं सोच में ||

[First attempt at Hindi poetry! :| Please forgive me for the mistakes. The rest is poetic license ;)]
 
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